गजब जुल्म ढाये जा रही है जिंदगी
और खाये जा रहे है हम,
कितने खा लिए, कितने खाने बाकी है,
फिर भी नही होते ये कम।
गम की नैया पर सवार है ,
होते रहते हर पल ये सितम।
दिल करता है टूटकर रोने को,
पर आँखों मे अश्रु हो जाते है कम।
देखने को अच्छा लगता है ये नीला आशमाँ,
पर पीछे के अंधेरे को कोई न जानता।
पूछते है लोग सिर्फ कितना कमा लेते हो,
कैसे कमाता हूँ कोई ये नही जानता।
मुस्कुराहट ही अच्छी लगती है दुनियां को,
कोई इसके पीछे का रहस्य नही जानता।
सब मानते रिश्तों में मुझे अपना,
पर कोई दिल से मुझे अपना नही मानता।
ये जिंदगी है जनाब, राहें नही होती आसान
सिर्फ सोच कर ही रह जाता हूँ हैरान।
अब हर किसी की जी हुज़ूरी करनी पड़ती है,
हो जाये अगर गलती तो डाट भी झेलनी पड़ती है।
-आनन्द
4 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर रचना। जीवन के बारे में एक बेहतरीन आकलन प्रस्तुत किया है आपने। शुभकामनाएं आदरणीय आनन्द जी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
पेट के लिए जाने क्या-क्या करना पड़ता है, सहना पड़ता है
क्या करें जिंदगी है, बिना कुछ करे जिया भी नहीं जा सकता है
बहुत अच्छी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
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