धमक धमक ढोल बाजे,अछि धमक नगारा की।
आसे घर दुर्गो नही हुतो, सुन्नत होती सारा की।।
जसवंत केयो जोय कोय घर रखवालो दुर्गड़ो।
साची किदी सोय,अछि आसकरणवत।।
बाबो कहत पुकारती जाणू नि उण रो वेश।
कारण कि निज नैण सूं देख्यो नई दुर्गेश।।
एक दिन उर्म यूँ कह्यो रत्न वालो कोई विशेष।
मांगो निज मुख सूं देउँ, आसकरण दुर्गेश।।
खग वालो जग वालो , वालो मुरधर देश।
श्याम धर्म वालो सदा ,नित वालो नरेश।।
शरीर कीजे काठ का,पग कीजे पाषाण।
बख्तर कीजे लोह का,जद पहुँचे जैसाण।।
आठ पहर चौबीस घड़ी, घुड़ले ऊपर बास।
सेल अणी सूं शेकतो, बाटी दुर्गादास।।
धरती या जैसाण री, बढ़ती कदे न और।
पाणी जठे पताल में,नारी नैणा कौर।।
गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरो, अर गढ़ बीकानेर।
भलो चिणायो भाटियों, सिरे गढ़ जैसलमेर।।
बिका तेरो बीकाणो ,जोधाणे सवायो बाजसी।
डाडाली ढोकर बूढ़ी, कह तू गयी बिदेश।
खून बिना क्यों खोसिज्, निज बीकानो देश।।
मत ना डीजे केसर थारो मारो पोत,
मत ना लजाये राठौड़ा री जातड़ी।।
ढोली रा छोरा तू तो मद्रो ढोल बजा,
ढोल र ढमाके म्हारे केसर घोड़ी नाचसी।।
सन पन्द्रह सौ पैंतालिस, सूद वैशाख सुमेर।
थावर बीज थरपियो,बीको बीकानेर।।
तू स देसी रूंखड़ो, म्हे परदेसी लोग।
म्हे तो अकबर तेडिया,तूं क्यों आयो फोग।।
मामे लाजे भाटियों, कुल लाजै चौहान।
जे मैं परणु तुर्कडी, उलटो उग्गे भान।।
भूख न मेटे मेडतो, अर न मेटे नागौर।
आ रजवट भूख अनोखड़ी,अर मरया मिटे चितोड़।।
है गढ़ म्हारो, हुँ धणी,असुर किम फिर आण।
कुंच्या जे चित्रकोट री दिधि,मोहि दिवाण।।
नाना गीगा गीगली,जामण कामण गेह।
भड़ बाल्या निज हाथ सूं,करतब ऊंचो नेह।।
केहरी केस, भुजंग मण, सरणाई सोहड़ा।
सती पयोधर, कृपण धन, पड़सी हाथ मुवाह।।
अर्थ- शेर का बाल, साँप की मणि,किसी योद्धा की शरण मे गया व्यक्ति,किसी पतिवृता नारी का आंचल,किसी कंजूस का धन है सब ,तभी हाथ आ सकते है जब वह मर जाए।
क्षीर समंदर नी घटे,ज्ञानी घटे न ज्ञान,।
नटे नही भाटी भैरों,चाहे टूट पड़े आसमान।।
चुण्डा अजमल आविया,मांडू हुं धके आग।
जोधा रणमल् मारिया,भाग सके तो भाग।।
जलम्यो केवल एक बर, प्रण्यो एकज नार।
लड़ियों भिड़ियों कौल पर,एक भड़ दो -दो बार।।
इति श्री