प्राणवायु- जीवनदायिनी हवा
मत कर शैतानियां ,ये परेशानी का जमाना है
कर ले थोड़ा रहम खुद पर, फिर वही समां रहने वाला है।
होता है कभी- कभी वक्त भी बेईमान,थोड़ा रख सब्र
फिर वही मौसम, पुराना रहने वाला है।
गुनाहों की सजा कहे या आदमी की फितरत,
आखिर पूरी दुनियां को परेशानी है।
थोड़ा रुक जा, रहने दे सब कामों को,
करेगा अगर शैतानी, तो ये प्रकृति के साथ बेमानी है।।
कहा करते थे बुजुर्ग भी, कर ले इज्जत प्रकृति की,
पर तूने अपना ही स्वार्थ कमाया।
जरूरतें तो कर ली पूरी तूने, लेकिन
प्रकृति का सम्मान पूरा गंवाया।।
हंसता था तू लोगों पर जब,पानी को बंद बोतल में बेचा।
पर किसी दिन प्राणवायु भी बिकेगी ,ये कभी न सोचा।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता जाएगा?
एक दिन तो पलटवार होगा, तूने ऐसा क्यों नही सोचा?
अभी भी वक्त है, कुछ न ज्यादा बिगड़ा,
सुधर जा और सुन ले प्रकृति की पुकार।
वरना आने वाली पीढियां भी दोष देंगी,
और जीना ही उनका हो जाएगा दुस्वार।।
खुदा जब बांट रहा था मुफ्त में इसको,
तो तूने कीमत इसकी नही पहचानी।
साक्षात प्रकोप चल अब रहा इसका,
अब तो बचा ले प्राणवायु जीवनदायिनी।।
सप्रेम विनती-दोस्तों प्रकृति के महत्व को समझे, ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाएं , ये अपने नही तो अपनी आने वाली पीढ़ियों के हित मे ही लगाएं।
वातावरण को शुद्ध करने हेतु प्रयास करे।
धन्यवाद।
3 टिप्पणियां:
प्रकृति से संतुलन का अभाव ही सारी विपदाओं की जड़ है।
Nice post
Thanks
सुंदर कविता !
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