शेखावाटी का इतिहास भाग-1
फ़ोटो- शेखाजी
दुल्हराय जी की कई पीढ़ी पश्चात मोकल जी जिनका कार्यकाल 1430 से 1445 बताया जाता है,को प्रौढ़ावस्था तक कोई पुत्र नही हुआ।तब किसी सन्त के मतानुसार वे वृन्दावन गए और गौसेवा करने लग्गे।जंगल जाकर गाये चराते थे। इसी दौरान शेख बुरहान नामक फकीर स उनकी भेंट हुई। उन्होंने फकीर को अपनी सेवा से प्रसन्न किया और पुत्र प्राप्ति की इच्छा जाहिर की।शेख बुरहान ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। विज्यादसमी वि.स 1490 को निर्वाण रानी से पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम शेखा रखा गया।
1502 वि.स. में शेखाजी का राजतिलक अपने पिता की मृत्यु के बाद किया गया, महज 12 वर्ष की उम्र थी उनकी उस वक्त तथा काका खींवराज इनके संरक्षक थे।
16 साल तक आते आते राजपूत बालक अपने आप समर्थ हो जाता था।शेखा ने भी राज्य भार संभाला।
सांखला राजपूतो का नाण के पूर्व में जांजा पर अधिकार था। उस समय यह नगरचाल के नाम से जाना जाता था। 16 वर्षीय राजपूत युवक का हौसला बढ़ा और राज्य प्रसार की भावना का विकास हुआ।सेना तैयार की और जाँजा पर आक्रमण कर दिया शेखा ने और कब्जा कर लिया। यह शेखा का प्रथम अभियान था।
इस प्रकार पराजित होकर सांखला राजपूत नोपाजी के नेतृत्व में संगठित होकर सांखला शक्ति को मजबूत करने लगे और शेखाजी को धमकी भरा समाचार भेजा-
जाँजा जाण न आजे शेखा ओ छ साईंवाड।
ओ नोपो हरिराम रो देसी तन्ने बिगाड़।।
वीर शेखा भी तैयार ही था बस मौके की तलाश में था जो उसने खुद पूरी कर दी।तुरन्त शेखा ने साइंवाड़ पर आक्रमण कर दिया और देखते ही देखते सारी सांखला शक्ति को धूल चटा दी।इस प्रकार सम्पूर्ण सांखला शक्ति पर शेखा का राज हो गया।
इसके बाद ही पास के टांक और यादव शक्तियों पर भी आक्रमण किया गया और उन पर अधिकार किया गया। वि.सं.1516 तक शेखा की धाक चारो तरफ जम चुकी थी।
नाण जैसे ठिकाने को शेखा ने एक राज्य के रूप में बदल दिया और नई राजधानी बनाने की सोचने लगे।1517 में उन्हीने अमरसर बसायाऔर उसको अपनी राजधानी बनाया।
#सशक्त_सेना- शेखा की सेना को अब और सुगठित होने की जरूरत थी। इससे सशक्त बनाने वाले थे- पन्नी पठान।
दावल पाटन गुजरात के सुल्तान महमूद से नाराज होकर मुल्तान को चल पड़े। पाँच सौ पठान अमरसर आकर रुके। शेखा ने उनका सम्मान किया और भाई मानकर कहा कि उनसे कभी बैर नही होगा।
बताया जाता है कि ये पन्नी पठान तलवारबाजी और गुड्सवारी में इतने निपुण थे कि पलक जफकते ही अगले खेमे को ढेर कर देते थे। शेखा में इनकी शक्ति को सही तरीके से भुनाने की सोची और उन्हें अपने सेना में शामिल कर लिया। अब शेखा की सेना के सामने पड़ोसी आंख नही उठाते थे।
क्रमशः-
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