अधूरे ख़्वाब
कहते है कि अगर सपने खुली आँखों से देखे जाए और अगले ही पल से जी तोड़ कोशिश उनको पूरा करने के लिये की जाए तो कोई अलौकिक ताकत भी आपका साथ देने लगती है और एक अटूट दृढ़ विश्वास के साथ पूरे भी होने लगते है।
ऋचा ने भी अपनी नई जिंदगी के साथ कुछ सपने देखे थे और मोहित जो कि ऋचा का हमसफर था , वह इन सबसे अनभिज्ञ था कि ऋचा की आकांक्षाए बड़ी थी।
जैसे ही दोनों परिणय सूत्र में बंधे तो एक दूजे के लिए सब कुछ नया जैसा था। धीरे-धीरे जिंदगी शुरू हुई और आगे बढ़ने लगी और दोनों अपने-अपने रोजमर्रा की आपाधापी में व्यस्त रहने लगे। और अब तक दोनों ने 24 बसंत पूरे कर लिए थे।
मोहित को एक छुट्टी मिलती आफिस से और वह उसे अपने बाकी रहे घर के कामों में लगा रहता और रहे भी क्यों न, ग्रामीण परिवेश में पला बढ़ा मोहित एक सरकारी महकमे में बाबू जो था।
और ऋचा काफी पढ़ी लिखी और होशियार लड़की थी ,वह तो बस अपनी गृहस्थी में लीन थी और फिर एक दिन उसे अपने पुराने दिनों की डायरी हाथ लगी और अपलक वह पढ़ने लगीं।
इसमे उसके कुछ सपने जो आज भी धुंधली स्याही में लिखे हुए और साफ दिखाई दे रहे थे। जिन्हें पढ़कर ऋचा एक दम उत्साहित हो गयी लेकिन अगले ही पल वह थोड़ी सी उदास हो गयी और फिर वापस डायरी पढ़ने लगी।
आज उसके जहन में वो सारे लक्ष्य सामने आ गए जो उसने कभी अपने कॉलेज के वक्त देखे थे लेकिन समस्या ये भी थी कि वह कैसे बिना मोहित के पूरे हो सकते थे। और वह तो ठहरी सरल स्वभाव की ।
कैसे मोहित को बताए कि उसे ताजमहल के सामने बीचों-बीच फ़ोटो खिंचवानी है, शिमला की बर्फीली वादियों में मस्ती करनी है ,और कैसे उसे एक लंबी यात्रा पर जाना है ,जहाँ सिर्फ रहेंगे उसके सपने और वो। यह सब करने की उसकी प्रबल इच्छा थी जो अब वापस जागृत हो चुकी थी।
ऐसे चलते- चलते जब एक दिन अचानक वह डायरी मोहित के हाथ लगी और जैसे ही उसने पढ़ी तो वह एक दम अचंभित रह गया। और उसने सोचा कि कैसे भी करके इस साल वह उसके पहले सपने को तो पूरा करके ही दम लेगा।
अगले ही सप्ताह उसके स्कूल में शीतकालीन अवकाश आया उसने भी कुछ छुटियां और अप्लाई कर दी। और घर आकर ऋचा से बोला- क्यों न ऋचा इस बार कही बाहर घूम के आया जाए। देखो न मैं भी इस बार खाली हुँ और बहुत टाइम से में बोर भी हो रहा हूँ। क्या कहती हो-कही चला जाये??
इतने में ऋचा तपाक से बोली-वैसे कितने दिन की छुटियां है आपकी?
और मोहित बोला-दस काफी होंगी।?
अब तो ऋचा की खुशी का ठिकाना ही नही था ,वह मन ही मन सोच रही थी कि इस बार वह अपने एक सपने को तो पूरा कर पाएगी। और अगले ही पल बोल पड़ी- क्यों न शिमला चला जाये वहाँ बर्फ भी खूब मिलेगी और पहाड़ भी।
मोहित पहले तो थोड़ा सोच में पड़ गया लेकिन फिर बोला - ठीक है, रज्जो। ये 10 दिन शिमला के नाम।
अब तो बस ऋचा को छुट्टियों का इन्तजार था और वह बड़े उत्साह से सारे काम करने लगी। एक दिन मोहित की छुटियां भी आ ही गयी और दोनों ने उसकी तैयारी भी शुरू कर दी।
सर्दी के कपड़े और बाकी समान लिए और एक दिन दोनों रवाना हो गए।
शिमला पहुँच कर ऋचा ने बर्फ में काफी मस्तियां की और खूब अच्छी -अच्छी जगहों पर घूमे। घूमते-घूमते एक दिन सूर्यास्त पॉइंट पर बैठे बाते कर ही रहे थे तो ऋचा ने बोला- मोहित , क्यों न हम साल में एक कार्यक्रम घूमने का रखे।
मोहित बोला- बिल्कुल। क्यों नही, एक तो रख ही सकते है। कुछ सोचकर मोहित बोला- ऋचा, तुम्हे और कहाँ-कहाँ घूमना है?
ऋचा बोली- एक एक कर घूम ही लेंगे अब तो।
इतने में मोहित बोला- मेरी एक इच्छा है कि ताजमहल चले अगली बार और उसके सामने एक बड़ी सी फोटो हो हमारी।
ऋचा संदेह से बोली- तुम्हे भी ताजमहल पसंद है?
मोहित- बिल्कुल।
ऋचा- मतलब , हम दोनों को अच्छा लगता है ये?
मोहित- मतलब तुम्हे भी?
ऋचा - हाँ भी, कॉलेज टाइम से सोच रही थी ,लेकिन कभी जाना ही नही हुआ।
मोहित- अगला , पॉइंट वही रखे?
ऋचा- क्यों नही।
मोहित- चलो फिर पक्का, लेकिन ऋचा तुम्हारे और क्या क्या शौक है-?
इतने में ऋचा तो बस रुकने का नाम ही नही ले रही थीं, ऐसे लग रहा था जैसे भगवान ने उसकी इच्छाएं पूछी हो और वो एक एक करके सारी बता दी।
मोहित अब ज्यादा खुश था क्योंकि पहली बार इतने सालों में उसकी अर्धांगिनी ने कोई इच्छाएं उसके सामने रखी थी जो अब बिना मोहित के पूरी नही हो सकती थी।
ऐसे प्लान बनाते बनाते कब दोनों एक दूसरे की बाहों में सो गये पता भी नही चला।
तभी ड्राइवर बोला- साब जी, अंधेरा हो गया , चलते है।
इसी के साथ दोनो सकपका कर उठे और गाड़ी में बैठ कर वहाँ से होटल पहुँचे।
लेकिन मोहित ने अभी तक ऋचा को एहसास तक नही होने दिया कि उसने उसकी डायरी पढ़ी भी है।
इसलिए कहते है कि - कभी -कभी चोरी से किसी के राज जानना भी अच्छा होता है
और कहते है कि- उम्र सफर करती है हर पल, ख्वाब वही रहते है।
दोस्तों, जिंदगी बड़ी छोटी है और सपने ढेर सारे, आज ही से उनको पूरा करने की कोशिश करे।
- आनन्द शेखावत-
पिक- fb
कहते है कि अगर सपने खुली आँखों से देखे जाए और अगले ही पल से जी तोड़ कोशिश उनको पूरा करने के लिये की जाए तो कोई अलौकिक ताकत भी आपका साथ देने लगती है और एक अटूट दृढ़ विश्वास के साथ पूरे भी होने लगते है।
ऋचा ने भी अपनी नई जिंदगी के साथ कुछ सपने देखे थे और मोहित जो कि ऋचा का हमसफर था , वह इन सबसे अनभिज्ञ था कि ऋचा की आकांक्षाए बड़ी थी।
जैसे ही दोनों परिणय सूत्र में बंधे तो एक दूजे के लिए सब कुछ नया जैसा था। धीरे-धीरे जिंदगी शुरू हुई और आगे बढ़ने लगी और दोनों अपने-अपने रोजमर्रा की आपाधापी में व्यस्त रहने लगे। और अब तक दोनों ने 24 बसंत पूरे कर लिए थे।
मोहित को एक छुट्टी मिलती आफिस से और वह उसे अपने बाकी रहे घर के कामों में लगा रहता और रहे भी क्यों न, ग्रामीण परिवेश में पला बढ़ा मोहित एक सरकारी महकमे में बाबू जो था।
और ऋचा काफी पढ़ी लिखी और होशियार लड़की थी ,वह तो बस अपनी गृहस्थी में लीन थी और फिर एक दिन उसे अपने पुराने दिनों की डायरी हाथ लगी और अपलक वह पढ़ने लगीं।
इसमे उसके कुछ सपने जो आज भी धुंधली स्याही में लिखे हुए और साफ दिखाई दे रहे थे। जिन्हें पढ़कर ऋचा एक दम उत्साहित हो गयी लेकिन अगले ही पल वह थोड़ी सी उदास हो गयी और फिर वापस डायरी पढ़ने लगी।
आज उसके जहन में वो सारे लक्ष्य सामने आ गए जो उसने कभी अपने कॉलेज के वक्त देखे थे लेकिन समस्या ये भी थी कि वह कैसे बिना मोहित के पूरे हो सकते थे। और वह तो ठहरी सरल स्वभाव की ।
कैसे मोहित को बताए कि उसे ताजमहल के सामने बीचों-बीच फ़ोटो खिंचवानी है, शिमला की बर्फीली वादियों में मस्ती करनी है ,और कैसे उसे एक लंबी यात्रा पर जाना है ,जहाँ सिर्फ रहेंगे उसके सपने और वो। यह सब करने की उसकी प्रबल इच्छा थी जो अब वापस जागृत हो चुकी थी।
ऐसे चलते- चलते जब एक दिन अचानक वह डायरी मोहित के हाथ लगी और जैसे ही उसने पढ़ी तो वह एक दम अचंभित रह गया। और उसने सोचा कि कैसे भी करके इस साल वह उसके पहले सपने को तो पूरा करके ही दम लेगा।
अगले ही सप्ताह उसके स्कूल में शीतकालीन अवकाश आया उसने भी कुछ छुटियां और अप्लाई कर दी। और घर आकर ऋचा से बोला- क्यों न ऋचा इस बार कही बाहर घूम के आया जाए। देखो न मैं भी इस बार खाली हुँ और बहुत टाइम से में बोर भी हो रहा हूँ। क्या कहती हो-कही चला जाये??
इतने में ऋचा तपाक से बोली-वैसे कितने दिन की छुटियां है आपकी?
और मोहित बोला-दस काफी होंगी।?
अब तो ऋचा की खुशी का ठिकाना ही नही था ,वह मन ही मन सोच रही थी कि इस बार वह अपने एक सपने को तो पूरा कर पाएगी। और अगले ही पल बोल पड़ी- क्यों न शिमला चला जाये वहाँ बर्फ भी खूब मिलेगी और पहाड़ भी।
मोहित पहले तो थोड़ा सोच में पड़ गया लेकिन फिर बोला - ठीक है, रज्जो। ये 10 दिन शिमला के नाम।
अब तो बस ऋचा को छुट्टियों का इन्तजार था और वह बड़े उत्साह से सारे काम करने लगी। एक दिन मोहित की छुटियां भी आ ही गयी और दोनों ने उसकी तैयारी भी शुरू कर दी।
सर्दी के कपड़े और बाकी समान लिए और एक दिन दोनों रवाना हो गए।
शिमला पहुँच कर ऋचा ने बर्फ में काफी मस्तियां की और खूब अच्छी -अच्छी जगहों पर घूमे। घूमते-घूमते एक दिन सूर्यास्त पॉइंट पर बैठे बाते कर ही रहे थे तो ऋचा ने बोला- मोहित , क्यों न हम साल में एक कार्यक्रम घूमने का रखे।
मोहित बोला- बिल्कुल। क्यों नही, एक तो रख ही सकते है। कुछ सोचकर मोहित बोला- ऋचा, तुम्हे और कहाँ-कहाँ घूमना है?
ऋचा बोली- एक एक कर घूम ही लेंगे अब तो।
इतने में मोहित बोला- मेरी एक इच्छा है कि ताजमहल चले अगली बार और उसके सामने एक बड़ी सी फोटो हो हमारी।
ऋचा संदेह से बोली- तुम्हे भी ताजमहल पसंद है?
मोहित- बिल्कुल।
ऋचा- मतलब , हम दोनों को अच्छा लगता है ये?
मोहित- मतलब तुम्हे भी?
ऋचा - हाँ भी, कॉलेज टाइम से सोच रही थी ,लेकिन कभी जाना ही नही हुआ।
मोहित- अगला , पॉइंट वही रखे?
ऋचा- क्यों नही।
मोहित- चलो फिर पक्का, लेकिन ऋचा तुम्हारे और क्या क्या शौक है-?
इतने में ऋचा तो बस रुकने का नाम ही नही ले रही थीं, ऐसे लग रहा था जैसे भगवान ने उसकी इच्छाएं पूछी हो और वो एक एक करके सारी बता दी।
मोहित अब ज्यादा खुश था क्योंकि पहली बार इतने सालों में उसकी अर्धांगिनी ने कोई इच्छाएं उसके सामने रखी थी जो अब बिना मोहित के पूरी नही हो सकती थी।
ऐसे प्लान बनाते बनाते कब दोनों एक दूसरे की बाहों में सो गये पता भी नही चला।
तभी ड्राइवर बोला- साब जी, अंधेरा हो गया , चलते है।
इसी के साथ दोनो सकपका कर उठे और गाड़ी में बैठ कर वहाँ से होटल पहुँचे।
लेकिन मोहित ने अभी तक ऋचा को एहसास तक नही होने दिया कि उसने उसकी डायरी पढ़ी भी है।
इसलिए कहते है कि - कभी -कभी चोरी से किसी के राज जानना भी अच्छा होता है
और कहते है कि- उम्र सफर करती है हर पल, ख्वाब वही रहते है।
दोस्तों, जिंदगी बड़ी छोटी है और सपने ढेर सारे, आज ही से उनको पूरा करने की कोशिश करे।
- आनन्द शेखावत-
4 टिप्पणियां:
प्रशंसनीय प्रस्तुति
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२९-१२ -२०१९ ) को " नूतनवर्षाभिनन्दन" (चर्चा अंक-३५६४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
मोहित ने सही कदम उठाया. बहुत बढ़िया
प्रतिक्रिया हेतु आभार।
एक टिप्पणी भेजें