जल हूँ मैं
अथाह लोगों का बल हूँ मैं,
यूँ व्यर्थं बहाने से थोड़ा तो कतराओ,
नही मिलूंगा मैं कुछ बरसों में,
व्यर्थ करते वक्त थोड़ा तो शरमाओ।
जल हूँ मै,
मुझसे ही है चलता जीवन सबका,
पेड़ पौधे, वनस्पति और मानव तन का,
करते करते उपभोग मेरा,कोशिश करो बचाने की,
वरना रोक न सकेगा कोई, स्थिति आपदा के आने की,
वर्तमान भी मेरा है, और आने वाला कल भी मेरा होगा,
लेकिन तब तक थल में, मेरा ना कोई अवशेष बचेगा,
जल हूँ मैं,
आपकी सभ्यता का कल हूँ मै,
मुझे सोच समझकर बरतो,
वरना इतिहास मुझे ही दोष देगा,
और एक सभ्यता का मुझसे ही नाश होगा,
लांछन लगना तय है मुझपे,
पर ,हे मानव !
निर्भर है यह सब तुझपे,
जल हूँ मैं,
बचा सको तो बचा लो मुझे,
मुझसे ही चलता सब है,
नुकसान मुझे है सबसे ज्यादा इस शैतान से,
जो विद्यमान है हर उस अहितार्थ इंसान में,
जल हूँ मै,
यूँ तो सबको जीवन मैं देता हूँ,
पर कोई मेरे जीवन की भी तो सोचे,
और आने वाली पीढ़ियों के कल की भी सोचे,
चाहे लाख साधन जुटा लो तुम जीने के,
पर मेरे बिना तुम न रह पाओगे,
आज अगर मैं बचा तो कल,
हर पल मुझे अपने अस्तितव में पाओगे,
इसीलिए कहता हूँ जल हूँ मैं,
आपकी जरूरतों का कल हूँ मैं,
7 टिप्पणियां:
वाह! आप की कलम यूँही चलते रहे।
Environment lover
बेहतरीन रचना आदरणीय
सादर
सुंदर रचना 👌 👌
बेहतरीन रचना ,सादर
Schhi tribute
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
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